हल्द्वानी: राज्य स्तरीय जलागम परिषद उत्तराखंड के उपाध्यक्ष शंकर कोरंगा ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की और जल, जंगल, जमीन व जन के संरक्षण को लेकर अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कीं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि भारत अब निर्णायक नेतृत्व और स्पष्ट नीति के युग में प्रवेश कर चुका है। कोरंगा ने कहा कि “भारत अब हर आघात का जवाब तीव्रता से देना जानता है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने देश को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत किया है, बल्कि आत्मगौरव और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा भी की है।” उन्होंने अनुच्छेद 370 की समाप्ति, राम मंदिर निर्माण, तीन तलाक कानून और नागरिकता संशोधन अधिनियम को ऐतिहासिक कदम बताया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की तारीफ करते हुए कोरंगा ने कहा कि धामी सरकार ने उत्तराखंड को सुशासन और पारदर्शिता की नई दिशा दी है। “समान नागरिक संहिता लागू कर उत्तराखंड ने देश को मार्गदर्शन दिया है,” उन्होंने कहा। भू-कानून, चारधाम मास्टर प्लान, महिला सुरक्षा योजनाएं और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति को राज्य के लिए मील का पत्थर बताया गया। जलागम परिषद को लेकर साझा की कार्य योजना अपने उपाध्यक्ष पद के कार्यों का उल्लेख करते हुए शंकर कोरंगा ने बताया कि उनकी प्राथमिकता जलागम कार्यक्रमों को महज तकनीकी परियोजनाओं के रूप में नहीं, बल्कि जन आंदोलन और सांस्कृतिक अभियान के रूप में विकसित करने की है। उन्होंने बताया कि चंपावत, खटीमा, केदारनाथ और हल्द्वानी में पायलट मॉडल के तौर पर जलागम योजना चलाई जाएगी। वहीं गांव में हमारे नौले का रख-रखाव पानी के स्रोतों को रीस्टार्ट करने के लिए प्रयास किए जाएंगे ।।
प्रमुख बिंदु:
जल स्रोतों की वैज्ञानिक मैपिंग और सैटेलाइट तकनीक का उपयोग।
UCOST सहित तकनीकी संस्थानों से साझेदारी।
जल पंचायत मॉडल के तहत ग्राम समुदायों को स्वशासी अधिकार।
CSR और बाह्य फंडिंग से संसाधनों की व्यवस्था।
युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर।
2025 में “उत्तराखंड जल मंथन” सम्मेलन आयोजित करने की योजना।
‘हर बूँद से जीवन जुड़ा है’
प्रेस विज्ञप्ति के अंत में कोरंगा ने कहा, “हर बूँद से जीवन, हर जल स्रोत से संस्कृति जुड़ी है – इसे बचाना केवल सरकार का नहीं, हम सबका दायित्व है।” उन्होंने राज्यवासियों से आह्वान किया कि वे जल, जंगल और जमीन की रक्षा में सहभागी बनें।