@अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस:तेजी से बदलते समुदायों के लिए संग्रहालयों की भूमिका… ★ संग्रहालय अतीत की धरोहर को सहेजने का कार्य करते हैं… रिपोर्ट- (सुनील भारती ) “स्टार खबर ” नैनीताल…

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नैनीताल।
कुमाऊँ विश्वविद्यालय, डीएसबी परिसर में अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर सोमवार को एक शैक्षिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग और अकादमिक मंच स्कॉलरली होराइजन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र, शोधार्थी और प्राध्यापक उपस्थित रहे। संगोष्ठी का मुख्य विषय थाकृ “तेजी से बदलते समुदायों के लिए संग्रहालय”, जिस पर वक्ताओं ने समसामयिक परिप्रेक्ष्य में गहन विचार-विमर्श किया।
कार्यक्रम की शुरुआत हिमालयन म्यूज़ियम की संयोजक प्रो. सवित्री कैड़ा जंतवाल के उद्घाटन वक्तव्य से हुई। उन्होंने संग्रहालयों की वर्तमान भूमिका और उनके सामाजिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षिक महत्व पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि संग्रहालय न केवल अतीत की धरोहर को सहेजने का कार्य करते हैं, बल्कि आधुनिक समय में सांस्कृतिक संवाद और सामुदायिक भागीदारी के केंद्र भी बनते जा रहे हैं। प्रो. कैड़ा ने इस बात पर बल दिया कि तेजी से बदलते समाज में संग्रहालयों को अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव लाने और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने क्षेत्रीय सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में आने वाली चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला और संग्रहालयों को संवाद के माध्यम के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इसके पश्चात शोधार्थी रिशव रावल ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इसकी वैश्विक प्रासंगिकता पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि यह दिवस संग्रहालयों की भूमिका को वैश्विक स्तर पर मान्यता देने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। उन्होंने कहा कि संग्रहालय न केवल ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रहण करते हैं, बल्कि समाज के बदलते परिप्रेक्ष्य में शिक्षा और जागरूकता के केंद्र के रूप में भी कार्य करते हैं।
संगोष्ठी में आकांक्षा जोशी ने संग्रहालयों की भविष्यगत समावेशिता पर एक प्रभावशाली प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि संग्रहालय अब केवल संग्रह और प्रदर्शन केंद्र नहीं रह गए हैं, बल्कि इन्हें सहभागिता और समावेश के केंद्र के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप संग्रहालयों के कार्यक्षेत्र में विविधता लाने का सुझाव दिया।
इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीतेश साह ने संग्रहालयों को “जीवित शिक्षण केंद्र” के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि संग्रहालय शिक्षण प्रक्रिया को वस्तुपरक और अनुभवजन्य बनाते हैं, जिससे छात्र व्यावहारिक और सजीव अनुभव प्राप्त कर पाते हैं। डॉ. साह ने संग्रहालयों को न केवल अतीत के दस्तावेजों तक सीमित रखने, बल्कि उन्हें वर्तमान के संदर्भ में जीवंत रखने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने संग्रहालयों में आभासी वास्तविकता और एआई तकनीकों के उपयोग का भी उल्लेख किया
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. संजय घिल्डियाल ने अपने संबोधन में कहा कि संग्रहालय न केवल इतिहास और संस्कृति का दर्पण होते हैं, बल्कि समाज और समुदायों के बीच संवाद स्थापित करने का महत्वपूर्ण माध्यम भी हैं। उन्होंने संग्रहालयों की सामाजिक भूमिका और समुदायों से उनके संबंधों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि संग्रहालय स्थानीय पहचान और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रो. घिल्डियाल ने यह भी बताया कि अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस का आयोजन पिछले वर्ष से डीएसबी परिसर में शुरू किया गया है और भविष्य में इसे और भी व्यापक स्तर पर मनाने की योजना है।
संगोष्ठी के अंतर्गत हिमालयी समुदायों के लिए क्षेत्रीय संग्रहालय की संकल्पना पर केंद्रित एक विचार-मंथन सत्र भी आयोजित किया गया। इस सत्र में विभिन्न विभागों के प्राध्यापकों और शोधार्थियों ने संग्रहालयों की भूमिका और उनके विस्तार पर विचार साझा किए। सत्र में यह भी चर्चा हुई कि क्षेत्रीय संग्रहालयों को स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को सहेजने और प्रदर्शित करने का एक प्रभावी मंच बनाना चाहिए।
समापन सत्र में शोधार्थी नीरज बिष्ट ने सभी वक्ताओं, सहभागियों और आयोजन से जुड़े सभी सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजनों से न केवल संग्रहालयों की भूमिका पर विचार करने का अवसर मिलता है, बल्कि शिक्षा और शोध की दिशा में भी नवीन संभावनाएं सामने आती हैं।
कार्यक्रम में शोधार्थियों और प्राध्यापकों की सक्रिय भागीदारी रही। इस शैक्षणिक आयोजन में रोहित भाकुनी, दीपक चन्याल, पाखी, लधिमा, सीमा नयाल सहित कई शोधार्थियों ने भाग लिया। इस आयोजन में प्रो. संजय टम्टा, डॉ. शिवानी रावत, डॉ. मनोज सिंह बफिला तथा हिमालयन म्यूज़ियम से डॉ. भुवन शर्मा, डॉ. पूरन अधिकारी, डॉ. एच.एस. जलाल, डॉ. वीरेन्द्र पाल, अनूप, डॉ. शिवराज कपकोटी और भुवन सहित कई अन्य द्वारा भी सक्रिय सहयोग प्रदान किया।