नैनीताल। कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर तीन महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस वर्ष की थीम प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करें पर आधारित यह आयोजन पर्यावरणीय चेतना और स्थायी विकास के प्रति विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यूजीसी-मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल में चल रहे फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम -25 के अंतर्गत 10 राज्यों से आए 37 शिक्षक प्रतिभागियों की उपस्थिति में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर केंद्रीय विश्वविद्यालय बठिंडा के प्रो. वी. के. गर्ग ने मुख्य वक्ता के रूप में सहभागिता की। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 460 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होने की संभावना है, जो कुल वैश्विक कचरे का लगभग 10% है। वर्तमान में 75 से 199 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्रों में पाया जाता है, और प्रतिदिन 8 मिलियन से अधिक प्लास्टिक के टुकड़े समुद्र में प्रवेश करते हैं। उन्होंने बताया कि केवल 9% प्लास्टिक का ही पुनर्चक्रण हुआ है और शेष पर्यावरण के लिए गंभीर संकट बना हुआ है। प्रो. गर्ग ने समाधान सुझाते हुए रिफ्यूज़, रिड्यूस, रीयूज़, रीसायकल और रीथिंक जैसे दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता बताई।
वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें तेजपत्ता और पाम के पौधों का रोपण किया गया। वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. ललित तिवारी ने पौधों को जीवन का आधार बताते हुए कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण मानवता के लिए एक गंभीर चुनौती है, जो सभी पारिस्थितिक तंत्रों को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने प्रतिभागियों से अनुरोध किया कि वे प्रत्येक वर्ष अपने जन्मदिन पर एक पौधा अवश्य लगाएं और प्रकृति के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करें।
इतिहास विभाग एवं अकादमिक समूह स्कालरली होराइजन द्वारा ‘पर्यावरणीय इतिहास उद्भव, प्रवृत्तियाँ एवं मुद्दे’ विषय पर केंद्रित कार्यक्रम इतिहास विभाग में आयोजित किया गया। इतिहास विभाग के विभागाध्यक्षप्रो. संजय घिल्डियाल ने मुख्य वक्तव्य में पर्यावरणीय इतिहास की अवधारणा को अकादमिक अनुशासन के रूप में व्याख्यायित किया। कार्यक्रम में प्रो. संजय टम्टा ने क्षेत्रीय इतिहास में पर्यावरणीय दृष्टिकोण के समावेशन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। विभागीय शोधार्थियों रोहित भाकुनी एवं नीरज बिष्ट, ने क्रमशः उत्तराखंड की नौला पर सांस्कृतिक एवं पारिस्थितिक दृष्टिकोण तथा प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में पर्यावरण के उल्लेख पर प्रस्तुतियाँ दीं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी एवं प्रतिभागियों की उत्साहजनक भागीदारी रही। कार्यक्रमों को प्रो. संजय टम्टा, डॉ. रीतेश साह, डॉ. शिवानी रावत, डॉ. मनोज सिंह बफिला, हिमालयन म्यूज़ियम के डॉ. भुवन शर्मा, डॉ. पूरन अधिकारी, डॉ. एच.एस. जलाल, डॉ. वीरेन्द्र पाल एवं आकांक्षा जोशी आदि का सहयोग प्राप्त हुआ।