उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, मंगसीर बग्वाल इगास (बूढ़ी दीपावली)… रिपोर्ट- (सुनील भारती) “स्टार खबर” नैनीताल

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उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, मंगसीर बग्वाल इगास (बूढ़ी दीपावली)…

रिपोर्ट- (सुनील भारती) “स्टार खबर” नैनीताल

नैनीताल। यह पर्व उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ी इलाकों में कार्तिक पर्व वाली दीपावली के एक माह बाद मनाया जाता है। एसा माना जाता है कि प्राचीन समय में इन दुर्गम इलाकों तक भगवान राम की लंका पर विजय की सूचना देर से पहुंची थी, इसलिए यहां दीपावली एक माह बाद मनाई जाने लगी।
मंगसीर बग्वाल में लोग भैला नामक जलती लकड़ी के गोले हवा में घुमाते हैं, जो साहस और आनंद का प्रतीक है। गांव-गांव में मेले लगते हैं, लोकगीत और ढोल-दमाऊं की थाप पर नृत्य होते हैं। यह पर्व सामाजिक एकता और लोकसंस्कृति का जीवंत उदाहरण है, जहां हर कोई उम्र और वर्ग की सीमाओं से परे होकर शामिल होता है।इस पर्व की एक और मान्यता है, जो गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल से जुड़ी है। तिब्बती लुटेरों को पराजित करने के बाद विजयी होकर जब वीर माधो सिंह अपने सैनिकों के साथ वापस टिहरी रियासत में पहुंचे, तब से ही विजयोत्सव के रूप में टिहरी रियासत में मंगसीर बग्वाल मनाने की परंपरा चली आ रही है।उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति इन पर्वों में झलकती है। कुमाऊं की महिलाएं जमीन और दीवारों पर पारंपरिक ऐपण बनाती हैं, जबकि भैलो से खेलना विजय-दीप जलाने की परंपरा से जुड़ा है।

लोकगीत, नृत्य और भैलो रे भैलो जैसे गीत आज भी घर-घर गूंजते हैं।