@ युग पुरूष स्वतंत्रता सेनानी और कुशल प्रशासक पंडित गोविन्द बल्लभ पंत….. रिपोर्ट – (हर्षवर्धन पाण्डे) “स्टार खबर ” नैनीताल

88

@ युग पुरूष स्वतंत्रता सेनानी और कुशल प्रशासक पंडित गोविन्द बल्लभ पंत…..

रिपोर्ट – (हर्षवर्धन पाण्डे) “स्टार खबर ” नैनीताल

गोविंद बल्लभ पंत को देश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और एक कुशल प्रशासक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने आधुनिक भारत को नया आकार देने में बड़ी भूमिका निभाई। गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर, 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था। इनकी मां का नाम श्रीमती गोविंदी बाई और पिता का नामा मनोरथ पंत था जो सरकारी नौकरी में रेवेन्यू कलक्टर थे उनके अक्सर स्थानांतरण होते रहते थे। इस कारण पंत जी अपने नाना के पास पले थे। वह बाल्यावस्था से ही एक मेधावी छात्र थे। पंत ने बी.ए. तथा एल.एल.बी. तक की शिक्षा ग्रहण की। 1909 में पंत जी को कानून की परीक्षा में यूनिवर्सिटी में टॉप करने पर गोल्ड मेडल मिला था। जब वे 18 वर्ष के थे, तो उन्होंने गोपालकृष्ण गोखले और मदन मोहन मालवीय को अपना आदर्श मानते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वयंसेवक के रूप में काम किया। वर्ष 1907 में उन्होंने कानून का अध्ययन करने का निर्णय लिया और कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1910 में उन्होंने अल्मोड़ा में वकालत शुरू कर दी और बाद में वे काशीपुर चले गए।काशीपुर में उन्होंने ‘प्रेम सभा’ नामक एक संगठन की स्थापना की, जिसने विभिन्न सामाजिक सुधारों की दिशा में काम करना शुरू किया। इस संगठन ने ब्रिटिश सरकार को करों का भुगतान न करने के कारण एक स्कूल को बंद किये जाने से भी बचाया।

एक बार पंत जब वकालत करते थे तो एक दिन वह चैंबर से गिरीताल घूमने चले गए। वहां पाया कि दो लड़के आपस में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में चर्चा कर रहे थे। यह सुन पंत जी ने युवकों से पूछा कि क्या यहां पर भी देश−समाज को लेकर बहस होती है। इस पर लड़कों ने कहा कि यहां नेतृत्व की जरूरत है। पंत जी ने उसी समय युवाओं की आवाज बनने के संकल्प के साथ से राजनीति में आने का निश्चय कर लिया। गोविंद बल्लभ पंत दिसंबर 1921 में असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए। एक वकील के रूप में वह सिर्फ सच्चे केस लेते थे। वह झूठ पर आधारित मुकदमे स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने काकोरी कांड, मेरठ षड्यंत्र के क्रांतिकारियों के अलावा प्रताप समाचार पत्र के सम्पादक गणेश शंकर विद्यार्थी के उत्पीड़न के विरोध में अदालतों में प्रभावशाली ढंग से पैरवी की थी। उन्होंने ‘शक्ति’ नाम से एक साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला जिसमें वह कुमायूँ की समस्याओं को उजागर करते थे। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने कुली बेगारी प्रथा के विरोध में अभियान चलाया। वह कलम के एक साहसी एवं वीर योद्धा भी थे। उन्होंने अपनी कलम को भी अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए एक सशक्त हथियार बनाया। ‘ शक्ति ‘अखबार के माध्यम से पंत जी बाद में कुली बेगार कानून के खिलाफ साहसपूर्वक लड़े। कुली बेगार कानून में था कि लोकल लोगों को अंग्रेज अफसरों का सामान फ्री में ढोना होता था। पंत इसके विरोधी थे। अल्मोड़ा में एक बार मुकदमे में बहस के दौरान उनकी मजिस्ट्रेट से बहस हो गई। अंग्रेज मजिस्ट्रेट को भारतीय वकील का कानून की व्याख्या करना बर्दाश्त नहीं हुआ। मजिस्ट्रेट ने गुस्से में कहा, “मैं तुम्हें अदालत के अन्दर नहीं घुसने दूंगा”। पंत जी ने पूरे साहस के साथ कहा, “मैं आज से तुम्हारी अदालत में कदम नहीं रखूंगा”।

पंत जी की विनम्रता की खान थे। एक बार पंत जी ने सरकारी बैठक की। इस बैठक में चाय−नाश्ते का इंतजाम किया गया था। जब उसका बिल पास होने के लिए उनके पास आया तो उसमें हिसाब में छह रूपये और बारह आने लिखे हुए थे। पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया। जब उनसे इस बिल पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले, ‘सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद भुगतान करना चाहिए। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है।’ जब साइमन कमीशन के विरोध के दौरान इनको पीटा गया था, तो एक पुलिस अफसर उसमें शामिल था। वो पुलिस अफसर पंत के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके कार्यालय के अधीन ही काम कर रहा था। इन्होंने उसे मिलने बुलाया। वो डर रहा था, पर पंत जी ने बहुत ही विनम्रता से बात करके उसका साहस बढ़ाया।जमींदारी उन्मूलन उनकी सरकार का साहसिक निर्णय था जिससे लाखों किसानों का भाग्य बदल गया और वे उस जमीन के मालिक बन गए जिस पर हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी उनका कोई अधिकार नहीं था।

वर्ष 1930 में गांधी जी के कार्यों से प्रेरित होकर ‘नमक मार्च’ का आयोजन करने के कारण उन्हें कैद कर लिया गया।वह उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) विधानसभा के लिये नैनीताल से ‘स्वराजवादी पार्टी’ के उम्मीदवार के रूप में चुने गए थे।सरकार में रहते हुए उन्होंने ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से कई सुधार किये।उन्होंने देश भर में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया। पंत जी ने राजकीय सेवा की पारिवारिक परम्परा से हट कर देश सेवा के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित कर दिया था। वे प्रखर वक्ता, नैतिक तथा चारित्रिक मूल्यों के उत्कृष्ट राजनेता, प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक थे।

गोविंद बल्लभ पंत सदैव अल्पसंख्यक समुदाय के लिये एक अलग निर्वाचक मंडल के खिलाफ रहे, वे मानते थे कि यह कदम समुदायों को विभाजित करेगा।द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पंत जी ने गांधी जी और सुभाष चंद्र बोस के गुटों के बीच समझौता करने का भी प्रयास किया, जहाँ एक ओर गांधी जी और उनके समर्थक चाहते थे कि युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन का समर्थन किया जाए, वहीं सुभाष चंद्र बोस गुट का मत था कि इस युद्ध की स्थिति का प्रयोग किसी भी तरह से ब्रिटिश राज को समाप्त करने के लिये किया जाए।वर्ष 1942 में उन्हें भारत छोड़ो प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिये गिरफ्तार किया गया और उन्होंने मार्च 1945 तक काॅन्ग्रेस कार्य समिति के अन्य सदस्यों के साथ अहमदनगर किले में कुल तीन वर्ष बिताए।अंततः पंडित नेहरू खराब स्वास्थ्य के आधार पर पंत जी को जेल से छुड़ाने में सफल रहे।

स्वतंत्रता के बाद गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने किसानों के उत्थान और अस्पृश्यता के उन्मूलन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया।सरदार पटेल की मृत्यु के बाद गोविंद बल्लभ पंत को केंद्र सरकार में गृह मंत्री बनाया गया था।गृह मंत्री के तौर पर उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन किया। वह देश भर में सबसे अधिक हिन्दी प्रेमी राजनेता के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने 4 मार्च, 1925 को जनभाषा के रूप में हिन्दी को शिक्षा और कामकाज का माध्यम बनाने की जोरदार मांग उठाई थी। महात्मा गांधी ने कहा था कि राष्ट्र भाषा के बिना देश गूंगा है। मैं हिन्दी के जरिए प्रान्तीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता किन्तु उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूँ। पंत जी के प्रयासों से हिन्दी को राजकीय भाषा का दर्जा मिला। पंत जी ने हिन्दी के प्रति अपने अत्यधिक प्रेम को इन शब्दों में प्रकट किया है− हिन्दी के प्रचार और विकास को कोई रोक नहीं सकता। हिन्दी भाषा नहीं भावों की अभिव्यक्ति है। वर्ष 1957 में पंत जी को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था।

7 मार्च, 1961 को पंत जी का देहावसान हो गया। युग पुरूष पं. गोविन्द बल्लभ पंत जी के पुत्र कृष्णचन्द्र पंत केन्द्र सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे। उनके परिवार में उनकी पत्नी एवं पूर्व सांसद श्रीमती इला पंत तथा दो बेटे रंजन व सुनील हैं। वे पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी की विरासत को देशवासियों के साथ आगे बढ़ाने के लिए संकल्पित हैं। अभी कुछ समय पहले स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत की प्रतिमा का अनावरण नई दिल्ली के पंडित पंत मार्ग पर किया गया है। पहले यह मूर्ति पहले रायसीना रोड सर्कल के पास स्थित थी, जिसे यहाँ से स्थानांतरित किया गया है क्योंकि यह ‘नए संसद भवन’ की संरचना के भीतर आ रही थी।