ओखलकांडा/रामगढ़ ”
पंचायत चुनाव के माध्यम से इन दिनों गांव की सरकार बनाने का कार्य चल रहा है। प्रचार-प्रसार का कार्य जोरों पर है। ऐसे में समय के साथ चुनाव प्रचार के तरीकों में भी काफी बदलाव आया है। गांव के कुछ बुजुर्गों ने चुनाव में आए बदलाव के बारे में बताया, कि आज भले ही पंचायत चुनाव का प्रचार डिजिटल मोड में हो रहा है, लेकिन एक समय था जब ढोल व झाल से पंचायत चुनाव का प्रचार फिजिकल मोड में होता था। ग्राम पंचायत चुनाव का तरीका इस बार काफी हद तक बदला हुआ नजर आ रहा है। चुनाव की घोषणा के बाद इंटरनेट मीडिया पर पंचायत के उम्मीदवारों का प्रचार बढ़ गया है। प्रत्याशियों और उनके समर्थकों ने इंटरनेट मीडिया पर अपने समर्थन में माहौल बनाना शुरू कर दिया। सात साल पहले हुए पंचायत चुनाव में जिले में ज्यादातर प्रत्याशी और उनके समर्थक इंटरनेट मीडिया से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ नहीं थे। इस बार तो पंचायत चुनाव की आहट मिलते ही प्रत्याशी और उनके समर्थक वाट्सएप, टेलीग्राम, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम सहित इंटरनेट मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर सुप्रभात से लेकर अपने वादों को भी साझा करना शुरू कर दिया है। ग्रामीण युवा कहते हैं कि जो प्रत्याशी मीडिया के बारे में जानकारी रखते हैं, उनके समर्थक इस काम को बखूबी संभाले हुए हैं। फेसबुक जैसी इंटरनेट साइट्स पर प्रत्याशी जहां अपने बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं। वहीं वे विकास का पूरा वादा कर रहे हैं। इंटरनेट साइट्स पर प्रत्याशी की पोस्ट पर जहां विकास कराने का वादा किया जा रहा हैं, वहीं मतदाताओं की तरफ से भी कमेंट्स किए जा रहे हैं। मतदाताओं की ओर से गलत, सही कमेंट का बुरा न मानते हुए संभावित प्रत्याशी उनसे हर कीमत पर सहयोग की अपील कर रहे हैं।
★. ढोलक-झाल था प्रचार का साधन
सत्तर के दशक में जब पंचायत चुनाव हुआ था, उस दौर में प्रचार का साधन ढोलक-झाल हुआ करता था। चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी दो-तीन होते थे। कहीं-कहीं जानकारी के अभाव में चुनाव निर्विरोध भी हो जाता था। इस पर किसी ग्रामीण को कोई आपत्ति नहीं होती थी व सभी एक साथ मिल कर रहते थे। उस दौर में सूचना का कोई साधन नहीं था। कुछ पढ़े-लिखे लोग ही चुनाव के बारे में जानते थे। गांव में रहने वाले अधिकतर लोग इसकी जानकारी स्थानीय कलाकारों के माध्यम से लेते थे। बुजुर्ग कहते हैं कि जब पंचायत चुनाव की घोषणा होती थी तो लोग रेडियो पर समाचार सुनकर चुनाव की तैयारी करते थे। नामांकन कब है, छंटनी कब है। चुनाव चिन्ह कब मिलेगा, इन सारी बातों की जानकारी भी किसी को नहीं होती थी। नामांकन पत्र के बाद चुनाव चिन्ह मिलने की जानकारी प्रत्याशी किसी दिन गांव पहुंचकर चौक-चौराहों पर बैठ कर देते थे। कोई ध्वनि यंत्र नहीं था। गांव के लोगों को एकत्रित करने के लिए डुगडुगी बजाई जाती थी। गांव में आने-जाने के लिए पगडंडी ही सहारा था।उस समय गांव के लोगों को जागरूक करने के लिए गांवों में प्रचलित नाच कराकर इस माध्यम से जनता को मतदान के लिए जागरूक किया जाता था। धनबल का नामोनिशान नहीं था। कहीं कहीं गांव में तो आपसी सामंजस से एक को अपना नेता सुन लेते थे ।