एक माह के अल्पसमय में बनभूलपुरा के लोगों के वैध-अवैध दस्तावेजों की जाँच कौन करेगा..? अगर शासन नही करेगा दस्तावेजों की जाँच तो यह सब मुद्दा बेईमानी…

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हल्द्वानी में रेलवे भूमि अतिक्रमण पर सर्वोच्च अदालत द्वारा फिलवक्त एक माह का समय मिला..पर अदालत द्वारा उठाए गए सवालों का कंप्लाइएन्स उत्तराखंड शासन समय पर कर पायेगा…?

 

हल्द्वानी में रेलवे भूमि अतिक्रमण पर अब देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा कुछ मुद्दों पर फिलवक्त स्टे लगा दिया गया है। कोर्ट ने सात दिन में बड़ी संख्या में लोगों को उक्त स्थल से हटाने के हाईकोर्ट के निर्देश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि 7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस.ओका की पीठ ने संबंध में उत्तराखंड राज्य और रेलवे को नोटिस जारी करते हुए 7 फरवरी, 2023 तक स्थगन आदेश पारित किया है।अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य और रेलवे को व्यावहारिक समाधान खोजने के लिए भी कहा।

बनभूलपुरा में बड़ी आबादी वो भी लंबे समय से रह रही,मानवीय पहलुओं को नजरंदाज नही किया जा सकता -सर्वोच्च अदालत…

सुप्रीम कोर्ट की दोनों जजों की बेंच विशेष रूप से इस तथ्य से चिंतित थी कि कई कब्जेदार दशकों से पट्टे और नीलामी खरीद के आधार पर अधिकारों का दावा करते हुए वहां रह रहे हैं।उनके पास अधिकारियों द्वारा स्वीकृत वैध दस्तावेज भी हैं।फिर सात दिनों के भीतर उनकी बेदखली क्यों..?उनका निश्चित पुनर्वास किया जाना चाहिए।लंबे समय से उक्त स्थान पर निवास करते रहने से ही उनको पुनर्वासित किया जाना चाहिए।चाहे भूमि रेलवे की ही क्यों न हो।इसमें एक मानवीय पहलू है जिसे नजरअंदाज नही किया जा सकता।

कोर्ट ने यह भी माना कि हो सकता है कि यहाँ के निवासियों की विभिन्न श्रेणियां हों लेकिन व्यक्तिगत मामलों की जांच करनी होगी। किसी को दस्तावेजों को सत्यापित करना होगा।
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या उत्तराखंड सरकार अपने प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उक्त पट्टों व वैधानिक दस्तावेजों की जाँच कराएगी..? जिससे स्पष्ट हो सकेगा कि कितने लोगों के पास उक्त भूमि के वैध दस्तावेज हैं।कहीँ बेवजह ही कुछ लोगों की आड़ में पूरी अवैध बस्ती को संरक्षण तो नही दिया जा रहा है।

एक माह के अल्पसमय में बनभूलपुरा के लोगों के वैध-अवैध दस्तावेजों की जाँच कौन करेगा..? अगर राज्य सरकार इसमें सहयोग नही करेगा तो मामला जाएगा खटाई में…

आपको बता दें कि पिछले 20-25 वर्षों में हल्द्वानी के बनभूलपुरा की आबादी बहुत ज्यादा बढ़ी है।क्योंकि लोगों को देश में कहीँ भी खाने-कमाने व रहने की संवैधानिक आज़ादी है। परंतु सरकारी भूमि में अवैध कब्जेदारों ने यहाँ के निवासियों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ा दी है।इसीलिये सर्वोच्च अदालत के वाज़िब आदेश के अनुक्रम में राज्य सरकार को एक बार वैध व अवैध कब्जेदारों को वर्गीकृत करना चाहिए।जिसके लिए एक 15 दिवसीय कैम्प जिलाधिकारी नैनीताल के निर्देशन में लगाना चाहिए।जिससे उक्त दस्तावेजों की पूर्णरूपेण पुष्टि से स्पष्ट हो जाएगा कि कुछ ही लोगों की आड़ में अवैध अतिक्रमणकारी उक्त भूमि पर कब्जा किये बैठे हैं।जिन्होंने कुमाऊँ के प्रवेश द्वार हल्द्वानी की छवि ख़राब कर रखी है।वास्तव में यह देवभूमि का प्रवेश द्वार कम व नरक द्वार ज्यादा लगता है।रेल से सफ़र करने वाले आगंतुकों को सबसे पहले बेतरतीब ढंग से बसी इसी बस्ती के दीदार सर्वप्रथम होते हैं।वास्तव में क्षेत्र में रेल सुविधाओं का विस्तार भी तभी संभव है जबकि पटरियों के इर्द-गिर्द व पटरियों के ऊपर बसी इस बस्ती पर राज्य सरकार पूरी तरह से सर्वोच्च अदालत में अपना पक्ष रख पाएगी।अन्यथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित इस बड़ी अवैध रिहायश के लिए व्यावहारिक समाधान खोजना संभव नही हो पायेगा। दस्तावेजों की जाँच के लिए उत्तराखंड सरकार को जल्द ही नोटिफिकेशन जारी करना होगा।