विदेशों में भी मिठास घोल रहा है नैनीताल के ये गावँ….आत्मनिर्भर बनने के साथ लाखों की हो रही है कमाई….सरकार प्रयास करे तो ऐसी योजनाओं से रुक सकता है पलायन…

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ज्योलिकोट से कैलाश जोशी की रिपोर्ट…

नैनीताल – रोजगार को लेकर देश में चर्चा आम है..सरकार स्वरोजगार के लिये लोगों को प्रेरित कर रही है तो नैनीताल का एक गांव ऐसा भी है जो आत्मनिर्भर बनने लगा है। इस गांव के फ्लेवर्ड शहद की मिठास अब देश ही नहीं बल्कि दुनियां तक पहुंचने लगी है।

गांव ने शुरु किया स्वरोजगार तो होने लगी लाखों की कमाई….

नैनीताल का ये ज्योली गांव शहद उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया है। गांव के 90 प्रतिशत लोग शहद उत्पादन से जुडे हैं तो इस शहद की मिठास को रोजगार से गांव के लोगों ने जोड़ लिया है। नैनीताल के पास इस गांव के शहद की डिमांड़ भी इस कदर है कि देश से लेकर विदेशों तक यहां का शदह पहुंच रहा है। 400 से 500 रुपये तक बिक रहे इस शहद को जितना गांव के लोग उत्पादन कर रहे है वो एक झटके में ही बिक जा रहा है जिससे गांव के लोग सालाना 2 लाख से ज्यादा का फायदा ले रहे हैं। गांव के शेखर भट्ट कहते हैं कि शुरुआत में पारम्परिक शहद का उत्पादन शुरु किया लेकिन बाद में इसे रोजगार से जोड़कर मैलीफेरा मक्खी से शहद का लोगों ने शुरु किया अब गांव के लोग अच्छा मुनाफा शहद से कमा रहे हैं इसके साथ किसान खेती बाड़ी का काम भी आसानी से कर लेता है। वहीं शहद कारोबार से जुड़े गणेश चन्द्र पाण्डे कहते हैं कि शहद उत्पादन के साथ मक्खी खेती के लिये भी उपयोगी है मधुमक्खी पराग को फैलाने का काम भी करती है जिससे खेती में भी फायदा होता है।

दरअसल 90 के दशक में गांव के लोग शहद के काम से जुड़े तो सरकारी मदद भी इसके बाद मिलने लगी…पहले पारम्परिक इंडिका मख्खी से पहाड़ के शुद्ध शहद तैयार किया गया तो वहीं मैलीफेरा मख्खी द्वारा फ्लेवर्ड़ शहद तैयार किया गया। लीची सरसों के साथ अन्य फ्लेवर में तैयार हो रहे शहद भी लोगों द्वारा पसंद किया जा रहा है। अगल अगल फ्लेवर शहद के लिये यूपी राजस्थान के साथ देश के अन्य हिस्सों में इन बक्सों को भेजा जाता है जहां बगीचों में शहद को तैयार किया जाता है। गांव के कुछ युवा अब इस शहद की आँन लाइन मार्केटिंग भी कर रहे हैं और विदेशों तक भी नैनीताल के ज्योली गांव का शहद जा रहा है। वहीं देवीधूरा के प्रधान धर्मेन्द्र रावत कहते हैं कि सरकार बेहतर सुविधाएं अगर दें और युवाओं को ट्रेनिंग समेत अन्य जानकारी दें तो पहाड़ में इसे बड़ा रोजगार देखर पलायन रोका जा सकता है। धर्मेन्द्र कहते हैं कि शहद के कारोबार ने गांव की तस्वीर बदल दी है तो विदेशों में भी ज्योली गांव का शहद मिठास घोल रहा है.. अगर पहाड़ में गांवों को खाली होने से बचाना है तो ऐसी ही प्लानिंग राज्य के अन्य हिस्सों में करनी होगी ताकि लोग खुद आत्मनिर्भर बनकर गांव में रोजगार कर सकें।