केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया मेडिकल के प्रथम वर्ष की हिंदी में लिखित तीन पुस्तकों का विमोचन..कितनी बड़ी है यह उपलब्धि…?

168

देश का पहला राज्य जहाँ मेडिकल की पढ़ाई अब मातृभाषा हिंदी में होगी..केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया तीन पुस्तकों का विमोचन…

मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है।जहाँ एम.बी.बी.एस की पढ़ाई अब हिंदी में होगी। इसी के साथ यूक्रेन, रूस, जापान, चीन, किर्गिजस्तान और फिलीपींस जैसे देशों की सूची में भारत भी शामिल हो गया है। जहां मेडिकल की पढ़ाई मातृ भाषा में होगी।देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज एम.बी.बी.एस फर्स्ट ईयर की तीन किताबों का विमोचन किया। इन किताबों का हिंदी में अनुवाद किया गया है।जिसके लिए अंग्रेजी से हिंदी में 97 डॉक्टर अनुवादकों की टीम ने चार माह का समय लिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उक्त तीन किताबों का विमोचन आज भोपाल में किया।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि अब डॉक्टर ‘Rx’ की जगह ‘श्री हरि’ लिखें…

मेडिकल की जिन तीन किताबों का विमोचन आज केंद्रीय गृह मंत्री ने किया है।वो किताबें क्रमशः एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायो केमिस्ट्री हैं।मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आज 16 अक्टूबर 2022 के इस दिन को भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा क्योंकि केंद्र सरकार हिंदी भाषा की यथास्थिति को बदलने के लिए तेजी से कदम उठा रही है।शिवराज ने यह भी कहा कि वह शिक्षा को पूरी तरह अंग्रेजी मुक्त करने और हिंदी भाषा पर आधारित शिक्षा देने की कोशिश करते रहेंगे।मेडिकल की शिक्षा देश में पहली बार बीजेपी राज में यह संभव हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि डॉक्टर ‘Rx’ की जगह ‘श्री हरि’ लिखें। और फिर दवाओं के नाम और दूसरी जानकारियां हिंदी में लिख सकते हैं।उन्होंने कहा कि जैसे डॉक्टर्स को क्रोसिन लिखना है तो क्या उसे हिंदी में नही लिखा जा सकता।भारतीयों को अंग्रेजी भाषा का गुलाम क्यों होना चाहिए…?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि गांधी मेडिकल कॉलेज के वॉररूम ‘मंदार’ में डॉक्टर्स, विशेषज्ञ, सदस्यों और युवाओं की टीम चार माह लगी रही। उन्होंने मेडिकल की किताबों को हिंदी में अनुवाद कर लिखा। अभी प्रथम वर्ष की पुस्तके तैयार हुई है। द्वितीय वर्ष की किताबों को बनाने का काम हो रहा है। यह अभियान पी.जी कोर्स की पुस्तकों तक लगातार जारी रहेगा।

समसामयिक संपादकीय..कहीं रोजगार,बढ़ती महंगाई व महंगी शिक्षा से आमजन का ध्यान बाँटना उद्देश्य तो नही…?

कुलमिलाकर अब बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या अंग्रेजी दवाओं को हिंदी में लिख कर राष्ट्रभाषा को सम्मानित किया जा सकेगा। आपको बता दें कि हमारे देश में आयुर्वेदिक दवाओं के नाम तो हिंदी व संस्कृत में होते ही हैं जिन्हें आयुर्वेदाचार्य उसी नाम से लिखते हैं।पर अब सिप्रोफलॉकसासिन,ऑफलॉक्स,टिनिडाजोल, ऐसिक्लोफिनेक,डिक्लोफेनेक आदि अनेक अंग्रेजी नामों को हिंदी में लिखने से क्या फर्क पड़ेगा..? वास्तविकता में या तो इन अंगेजी सॉल्ट्स को ही पहले शुद्ध भारतीय सॉल्ट घोषित किया जाय।और उनका नामकरण भी हिंदी में ही किया जाय।अन्यथा दवा तो अंग्रेजी ही होगी लेकिन उसको हिंदी में प्रसक्राइब कर प्रचार-प्रसार करने को जनता खूब समझ रही है।आम लोगों की जुबान पर तो आने वाले राज्यों में चुनावों की दस्तक को भी इस शिवराज मिशन से जोड़ कर देखा जा रहा है।अब महँगी होती मेडिकल शिक्षा विषय नही है बल्कि स्वदेशी व मातृभाषा का प्रलोभन देकर कहीं जनता को ठगने की रूपरेखा तो तय नही की जा रही है…