कम समयावधि में सम्पन्न की गई पूजा का फल भी कम…

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डी. लिट् डॉ. त्रिपाठी ने पूजा विधान की दी पूरी जानकारी…

आज एक विशेष शख्स ये मुलाकात हो गई।तो चर्चा भी कुछ खास ही होनी थी।जिक्र हुआ कि आजकल सामाजिक मूल्यों का पतन ज्यादा हो गया है।इस पर शख्स विशेष जो कि कभी बी.एच.यू के ज्योतिष विभाग के प्रोफ़ेसर रहे थे।रिटायरमेंट के बाद उन्होंने भवाली में मृत्युंजय आश्रम को अपना आश्रय स्थल बनाया है।

यहाँ हम बात कर रहे हैं डॉ. दिनेश कुमार त्रिपाठी की,जो कि ज्योतिष शास्त्र में पारंगत हैं। और इसी विषय से विद्या वाचस्पति (डी. लिट्) की उपाधि से अलंकृत हैं।और हिन्दू सनातन महासभा के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।

गूढ़ ज्ञान…प्रक्रिया का होता है विशेष महत्त्व…

चर्चा के दौरान मेरे प्रश्न कि सामाजिक मूल्यों का पतन अधिक हो गया है।इसपर उन्होंने कहा कि समयाभाव के कारण जो पूजा व मंत्रोचारण एक निश्चित समयावधि में बांधे जाने का जो ट्रेंड चलन में आने लगा है।वो बिल्कुल अनुचित है। मतलब जैसे महामृत्युंजय साधना में सवा लाख मंत्रों का जाप,11 बार रुद्राभिषेक महाकाल का शहद व गंगाजल से किया जाता है।पर वर्तमान समय में 11 हज़ार मंत्रों के जाप व एक बार रुद्राभिषेक करके संबंध में नियम प्रक्रिया से छेड़छाड़ की जाने लगी है।विशुद्ध सनातन पूजा-पाठ में नियमानुसार प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए अन्यथा फल भी अपूर्ण ही प्राप्त होता है।

कम समयावधि में सम्पन्न की गई पूजा का फल भी कम…

कुलमिलाकर सनातन परंपरा में प्रोसीजर यानी प्रक्रिया का विशेष महत्त्व है।जब तक पूर्ण परंपराओं के तहत प्रक्रिया अपनायी नही जाती,अपेक्षित परिणाम की कल्पना भी नही की जा सकती है। मतलब कम समय में जल्दी-जल्दी में अपूर्ण मंत्रोचारण द्वारा जो पूजा विधान प्रक्रिया अपनायी जाती है।उसका फल भी पूरा नही मिलता।अर्थात निश्चित प्रक्रिया के पालन करने पर ही पूजा-पाठ का का उचित फल मिलता है।