@भीमताल में बाघ को मारने के आदेश पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक.. ★वन विभाग के अधिकारियों के जवाब से संतुष्ट नहीं कोर्ट..1 हफ्ते में मांगा जवाब.. ★और क्या हुआ कोर्ट में पेशी के दौरान पढ़ें पूरी खबर…… ★ रिपोर्ट चंदन सिंह बिष्ट स्टार खबर नैनीताल….

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  • @भीमताल में बाघ को मारने के आदेश पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक..

★वन विभाग के अधिकारियों के जवाब से संतुष्ट नहीं कोर्ट..1 हफ्ते में मांगा जवाब..

★और क्या हुआ कोर्ट में पेशी के दौरान पढ़ें पूरी खबर……

★ रिपोर्ट चंदन सिंह बिष्ट स्टार खबर नैनीताल….

उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने भीमताल में आदमखोर बाघ को मारने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने वन अधिकारियों को फटकार लगाई है और पूछा कैसे बाघ को मारने के आदेश जारी किए जबकि पहले ट्रेंकुलाइज किया जाना था और अन्य संभावनों पर काम किया जाना चाहिए था। आज पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ धनंजय मोहन नैनीताल डीएफओ कोर्ट में पेश हुए, भीमताल के पास एक हफ्ते के दौरान 2 महिलाओं की गुलदार के हमले में मौत हो गयी जिसके बाद 9 दिसम्बर वन विभाग ने बाघ को टैंकुलाइज करने के निर्देश दिए जिसके एक दिन बाद यानी 10 दिसम्बर को बाघ को मारने का आदेश दे दिया गया। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बाघ को मारने के मामले का स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने एक हफ्ते के भीतर वन विभाग को आदेश दिया है कि वो अपना जवाब दाखिल करें। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने वन विभाग से कहा कि हमलावर हिंसक जानवर की पहचान करने के लिए कैमरे, उसको पकड़ने के लिए पिजड़े लगाए जाएं अगर पकड़ में नही आता है तो उसे ट्रेंकुलाइज कर रैस्क्यू सेंटर भेजा जाय। अभी तक यह पता नही है कि वह बाघ है या गुलद्वार फिर कैसे मारने के आदेश दे दिए। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11ए में उसे मारने के आदेश पर गुरुवार तक स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। अब मामले की अगली सुनवाई 21 दिसम्बर की तिथि नियत की है। दरअसल भीमताल में दो महिलाओं को मारने वाले हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन के आदेश का स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने सुनवाई की । कोर्ट ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमति देने के प्रावधान के बारे में जानकारी ली तो वो ठीक से इसका जवाब नहीं दे सके। वन विभाग ने कहा कि वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13ए में खूंखार हमलावर जानवर को मारने की अनुमती दी जाती है । उन्होंने इसे पकड़ने के व पहचान करने के लिए 5 पिजड़े व 36 कैमरे लगा रखे है। जिसपर न्यायालय ने उनसे पूछा कि गुलदार था या बाघ था ? उसे मारने के बजाए रैस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए। न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है नाकि किसी नेता का आंदोलन की। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11ए के तहत तीन परीस्थितियों में किसी जानवर को मार सकते हैं। उसे पहले उस क्षेत्र से खदेड़ जाएगा, फिर ट्रेंक्यूलाइज कर रैस्क्यू सेंटर में रखा जाएगा और अंत मे मारने जैसा अंतिम कठोर कदम उठाया जा सकता। लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए। उन्हें यही पता नही कि बाघ है या गुलदार। उसकी पहचान भी नही हुई। न्यायालय ने कहा कि घर का बच्चा अगर बिगड़ जाता है तो उसे सीधे मार थोड़ दिया जाता है। क्षेत्र वासियों के आंदोलन के बाद मारने के आदेश दे दिए।