सरकारी भूमि पर अवैध बस्तियाँ बनाकर अपनों को बसाने की कवायद में अपने बिरादरी के लोग ही करते हैं ठगी…

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नैनीताल मेट्रोपोल कंपाउंड में अवैध अतिक्रमण कारियों पर जिला प्रशासन द्वारा ध्वस्तीकरण की कार्यवाही के बाद खुल रहे हैं भेद…

आज नैनीताल के मेट्रोपोल कंपाउंड में अवैध अतिक्रमण कारियों के आशियानों को प्रशासन द्वारा नेस्तिनाबूद किये हुए एक दिन बीत चुका है।इस महंगाई के दौर में किसी भी व्यक्ति के सर से छत का छिनना हृदयाघात समान ही माना जा सकता है।ऐसे में राह चलते मेरी मुलाकात मेट्रोपोल कंपाउंड में 2011-12 से निवास कर रहे मोहम्मद मुज़ीद से हुई।जब मैंने उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट देखी तो मुझे कुछ समझ नही आया। मैंने हौले से उनकी मेट्रोपोल कंपाउंड रिहायश के बारे में पूछ लिया।तो उन्होंने कहा कि अल्लाह जो करता है यह बेहतर ही हुआ।तो मैंने उनसे पूछा कि वहाँ तो तुम्हारा भी आशियाना था..? उन्होंने फिर जो आपबीती सुनाई उससे लगा कि कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इन निवासियों के सख्त पैरोकार भी या तो बिना कुछ जाने ही अपनी कौम के रहनुमा बने हुए हैं या फिर उनको भी कुछ हिस्सा मिल रहा होगा जिससे वो लगातार इन अवैध बसाई गई बस्तियों के समर्थन में खड़े हो जाते होंगे।
बकौल मुज़ीद भाई कोविड काल में जब वो अपने घर संभल उत्तरप्रदेश चले गए थे।और जब वो कुछ माह वापस मेट्रोपोल कम्पाउंड अपने आवास पर नही आये तो कुछ दबंगों व उनकी ही कौम के रहनुमाओं ने उनके इस रजिस्ट्री रहित केवल कब्जेदार वाले बंद घर को किसी अपने चहेते को लाखों में बेच दिया।जिसका हिस्सा राजनीति में दखल रखने वालों सहित कौम के ठेकेदारों को भरपूर मिला।किसी प्रकार उन्होंने मान मनोव्वल के बाद अपने घर में पड़े अपने सामान को हासिल किया।लेकिन कुछ माह अपने घर में न रहने की सज़ा उन्हें अपने ही कौम के दरिंदों ने दे दी।

सरकारी भूमि पर अवैध बस्तियाँ बनाकर अपनों को बसाने की कवायद में अपने बिरादरी के लोग ही करते हैं ठगी…

समुदाय विशेष द्वारा अपने नज़दीकियों को शहर के निकट बसाने की चाहत में अपनी ही कौम के रहनुमा ही अपने बिरादरी से ही ठगी कर रहे हैं।उनका मकसद केवल शहर में अपना वर्चस्व कायम कर धन कमाना है।झील नगरी में मेट्रोपोल कम्पाउंड क्षेत्र तो छोटा सा ठिकाना था।राजनीतिक गठजोड़ के चलते आज भी बहुत से क्षेत्रों में कौम के कुछ रहनुमा अपने लोगों से अवैध धन वसूली कर अनेक कालोनियों को सरकारी जमीनों में बसा रहे हैं।जिसमें राजनीतिक शय के चलते इन्हें विद्युत व जल संयोजन उपलब्ध करा दिए जाते हैं। इस महंगाई के दौर में रजिस्ट्री शुदा भूमि व भवन खरीदना सभी के बूते की बात नही है इसीलिए कौम के रहनुमाओं द्वारा ही अपने लोगों को सस्ते में भूमि या भवन दिए जाने के मक़सद से सरकारी, नजूल,वन भूमि पर कब्जा करके कालोनियां विकसित कर दी जाती हैं।जिसमें अधिकतर उनके अपने ही मज़हब के लोगों की एक बस्ती बनाई जा सके।यही हाल हल्द्वानी,रामनगर सहित उत्तराखंड के अनेकों शहरों में किया गया है।जिसकी तस्दीक़ इस समुदाय के निकटस्थ लोग समय-समय पर करते रहे हैं।अब जबकि उत्तराखंड में ऐसे कृत्यों (सरकारी भूमि पर कब्जा) को करना क्रिमिनल ऑफेंस की श्रेणी में रखा गया है।देखना यह होगा कि सरकारी भूमि पर पूर्व में किये गए सभी अतिक्रमणों पर क्या वर्तमान राज्य सरकार ध्वस्तीकरण की कार्यवाही अमल में ला पायेगी या केवल चुनावी माहौल बनाकर छुटपुट मामलों को ही वरीयता देकर इति श्री कर ली जाएगी..?