चीन के बाद अब फ्रांस में बन रहा कृत्रिम ‘सूर्य’,भारत समेत 35 देशों के वैज्ञानिक जुटे हैं मिशन में…

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चीन के बाद अब फ्रांस में बन रहा कृत्रिम ‘सूरज’,भारत समेत 35 देशों के वैज्ञानिक जुटे हुए हैं मिशन में,अगर सफल हुए तो 1 ग्राम परमाणु से 8 टन पेट्रोलियम तेल के बराबर ऊर्जा बन सकेगी।

विश्व को जल्द ही पेट्रोलियम उत्पादों का सटीक विकल्प मिल सकता है। दुनियाभर में साफ और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों को हासिल करने के लिए फ्रांस में कृत्रिम “सूरज” बनाने की तैयारी चल रही है। इस काम में भारत समेत 35 देशों के वैज्ञानिक जी जान से जुटे हुए हैं।
आपको बता दें कि जब ये कृत्रिम “सूर्य” तैयार हो जाएगा। इससे निश्चित ही मानव इतिहास का ऊर्जा का सबसे बड़ा संकट खत्म हो जाएगा। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कहर से जूझ रही धरती को भी इस महासंकट से मुक्ति मिल जाएगी।


सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक परमाणु संलयन यानी न्यूक्लियर फ्यूजन पर अपनी बादशाहत हासिल करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं।अगर वैज्ञानिक इस मिशन “सूरज” में पूरी तरह सफल रहे तो एक ग्राम परमाणु ईंधन से 8 टन तेल के बराबर ऊर्जा बन सकेगी।और पेट्रोलियम उत्पादों का बेहतर विकल्प दुनिया को मिल सकेगा…
फ़्रांस में जिस सूर्य का निर्माण हो रहा है, वह इतना शक्तिशाली है कि सिर्फ एक ग्राम परमाणु से 8 टन पेट्रोलियम तेल जितनी ऊर्जा बनेगी। बैज्ञानिक परमाणु संलयन यानी न्यूक्लियर फ्यूज़न पर पूरी तरह से कंट्रोल करना चाहते हैं।न्यूक्लियर फ्यूजन से ही हमारे असली सूर्य और तारों से ऊर्जा बनती है। न्यूक्लियर फ्यूजन से ऊर्जा विकसित करने के बाद हमें “फॉसिल फ्यूल” यानी के जीवाश्म ईंधन की प्राप्ति होगी जिससे हमें पेट्रोल-डीजल का विकल्प मिल जाएगा और पेट्रोलियम उत्पादों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।क्योंकि यह जीवाश्म ईंधन पेट्रोलियम ऑयल्स से हज़ारों गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है।इसीलिए यह पेट्रोलियम उत्पादों का बेहतर विकल्प साबित हो सकेगा…

क्या है परमाणु संलयन यानी न्यूक्लियर फ्यूजन…

संलयन का अर्थ जुड़ना या जोड़ना होता है।इस प्रक्रिया में हल्के परमाणुओं को उच्च दबाव और उच्च तापमान पर अत्यधिक गर्म करके नाभिकीय संलयन किया जाता है।इस प्रक्रिया में कुछ द्रव्यमान भी खो जाते हैं। जो काफी ज्यादा ऊर्जा प्रदान करता है।
सूर्य से निरन्तर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का स्रोत वास्तव में सूर्य के अन्दर हो रही नाभिकीय संलयन प्रक्रिया का ही परिणाम होता है। सर्वप्रथम मार्क ओलिफेंट ने निरन्तर परिश्रम करके तारों में होने वाली इस प्रक्रिया को 1932 में पृथ्वी पर दोहराने में सफलता हासिल की थी। परन्तु आज तक कोई भी वैज्ञानिक इसको नियंत्रित नहीं कर सका है। इसको यदि नियंत्रित किया जा सके तो यह ऊर्जा प्राप्ति का एक अति महत्त्वपूर्ण तरीका होगा। पूरे विश्व में नाभिकीय संलयन की क्रिया को नियंत्रित रूप से सम्पन्न करने की दिशा में बड़े शोध कार्य जारी हैं।

रेडियो एक्टिव व ग्रीन हाउस गैसेस का कोई खतरा नही…

ईंधन के इस न्यूक्लियर विकल्प की कामयाबी से पेट्रोलियम उत्पादों से पर्यावरण को हो रहे नुकसानों से भी राहत मिलेगी।
क्योंकि इस ईंधन के विकल्प से थोड़ी भी ग्रीन हाउस गैसेस नहीं निकलती है। और इससे रेडियो एक्टिव कचरे से भी मुक्ति मिलने की उम्मीदें है।