महाराष्ट्र के वर्तमान सियासी संकट के पीछे टीम भाजपा या एन.सी.पी प्रमुख…

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महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की घेराबंदी में शरद पवार हैं सवालों के घेरे में..या भाजपा केंद्रीय नेतृत्व…

महाराष्ट्र में जिस तरह उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर संकट गहराया है।उसमें पुलिस इंटेलिजेंस की विफलता से इनकार नहीं किया जा सकता।ये विभाग राज्य के गृह मंत्रालय के अधीन आता है और इसके मुखिया एन.सी.पी के दिलीप पाटिल वलसे हैं। इस मामले में वलसे के साथ-साथ एन.सी.पी सुप्रीमो शरद पवार की भूमिका भी सवालों के घेरे में प्रतीत होती है।56 सालों के शिवसेना के इतिहास में यह चौथी बार बगावत हुई है।
आपको याद होगा कि वर्ष 2019 में जब महाराष्ट्र विधानसभा में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नही मिला था तब शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने तीन दिन 23 नवंबर से 26 नवंबर तक की सरकार भाजपा के साथ मिलकर बना ली थी।जिसमें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने धन संबंधी कुछ निर्णय तुरत-फुरत ले लिए थे। फिर शरद पवार के कहने पर फडणवीस सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।फिर भी अज़ीत पवार को अघाड़ी सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया था।विगत दिनों 11 जून को राज्यसभा में संख्या बल होने के बाद भी बीजेपी को पहले राज्यसभा चुनावों में सफलता मिलना फिर एम.एल.सी चुनावों में शिवसेना को मिली विफलता के कुछ तो मायने अवश्य होंगे।
अब बात उद्धव ठाकरे की करें तो लगता है कि राजनीतिक संकेतों को पढ़ने में उनसे गलती हो गई है। भाजपा उम्मीदवार की पहले राज्यसभा फिर एम.एल.सी चुनावों में जीत के बाद एन.सी.पी सुप्रीमो और महाराष्ट्र के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार ने पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस की प्रशंसा करते हुए एक तरह से उद्धव को आगाह किया था। लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस मामले को अनसुना कर अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय नही दिया।

अब तक तीन बार लगाया गया है राष्ट्रपति शासन..

अब तक महाराष्ट्र में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है ।पहली बार फरवरी से जून 1980 तक और फिर सितंबर से अक्टूबर 2014 तक। और तीसरी बार फिर से 12 नवंबर 2019 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

खड़े हुए बड़े सवाल…

कुलमिलाकर बड़ा सवाल यही है कि शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे एक साथ 36-40 विधायकों को अपने साथ मुंबई से सूरत ले गए और किसी को कानों कान भनक नहीं लगी..?
सूत्रों की माने तो उद्धव ठाकरे को कमजोर करने का खेल राज्यसभा चुनाव से शुरू हो गया था। पहले बीजेपी को राज्यसभा चुनाव में सफलता दिलवाई गई। जिसमें शिवसेना का उम्मीदवार हार गया। उसके बाद एम.एल.सी चुनाव में शिवसेना को हार का सामना करना पड़ा।ऐसा कहा गया कि दोनों ही चुनावों में क्रॉस वोटिंग से गड़बड़ी कराई गई। और गेंद भाजपा के पाले में डाल दी गई।
अगर उद्धव ठाकरे वक़्त रहते इस खेल को समझ जाते तो वह भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरह किसी तरह अपने विधायकों की बाड़ेबंदी करके अपनी सत्ता सुरक्षित करने की जुगत जरूर करते। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले 8 साल के कार्यकाल में केवल अशोक गहलोत ही एकमात्र ऐसे नेता रहे हैं।जिन्होंने तख्तापलट की कार्रवाई को विफल कर अपने अनुभव के झंडे गाड़े थे। कुछ भी कहें भाजपा हाई कमान अपने पुराने समर्थक ठाकरे परिवार को घुटने के बल तो ले ही आये है।अब यहाँ जीत शरद पवार की होती है या यह मायाजाल बीजेपी द्वारा बनाया गया है।पर इतना तो निश्चित ही लगता है कि मध्यप्रदेश की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी भाजपा सत्ता से दूर नही रह पा रही है।और बागियों को नई सरकार गठन में बड़े पदों का लालच भी दिया जा रहा है।यह पूरा खेला तो आने वाला वक़्त ही बताएगा..