इस लिए मनाई जाती है ईद… मालदारों की ईद तभी जब गरीबों के घर बने खीर

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रिपोर्टर – तनुजा बंगारी बिष्ट

नैनीताल – पूरे देश के साथ नैनीताल में भी ईद का पर्व धूमधाम से मनाया गया है। अमन और भाईचारे के तौर पर मनाये जाने वाले इस पर्व को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों में खासा उत्साह देखा गया..नैनीताल में फ्लैट्स मैदान में ईद की नमाज पड़ी गई और देश व दुनियां की अमन की कामना की गई..इस दौरान कमना की गई दी नैनीताल की तहर देश भर में आपसी भाईचारा बना रहे..नमाज के बाद सभी लोग एकत्र हुए जिसके बाद एक दूसरे को ईद की बधाई दी गई..इस दौरान जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल खालिक ने लोगों को संदेश दिया कि वो अमन के साथ ईद मनाएं और पडोसी के साथ हर जगह भाईचारे का संदेश दें…..

इस लिये हैं हर रोजेदार के लिये ईद के का महत्व….

दरअसल रमजान के 30 रोजों के बाद ईद मनाई जाती है इस ईद को ईद-उल-फित्र भी कहते हैं..ईद दो तरह की होती है इस्लामिक कैलेंड़र के अनुसार पहली ईद-उल-फित्र और दूसरी ईद-उल-जुहा होता है। रमजान के चांद नजर आने के बाद दूसरे दिन ईद-उल-फित्र का पर्व मुस्लिम समुदाय के लोग धूमधाम से मनाते हैं और ये इस्लामिक महीने के पहली तारीश को मनाया जाता है। कहा जाता है कि 624 ईस्वी में पहला ईद-उल-फ़ित्र  मनाया गया था. पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्त की थी. यह त्यौहार उसी खुशी में मनाया गया था जिसके बाद आज भी मुसलमानों का ये पर्व भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है., सभी लोगों की ईद मनाई जा सके इसके लिये खुदा से दुआ मांगी जाती है कि सुख शांति से ईद मनें और एक दूसरे को पकवान खिलाकर बधाई भी इस दिन देते हैं। ईद के दिन ईदगाह और मस्जिदों में ईद की नमाज का खासा महत्व है इस दौरान नमाज के बाद दुआ भी कबूल होती है.. ईद से पहले जकात और फितरा देने का महत्व- इस दिन इस्लाम को मानने वाले का फर्ज होता है कि अपनी हैसियत के हिसाब से जरूरतमंदों को दान देते हैं

क्या है जकात

इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी बताया गया है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा कि… यूं तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है, लेकिन वर्ष समाप्त होने पर ज्यादातर लोग रमजान के पूरे महीने में ही जकात देते हैं। हांलाकि जकाद पूरे साल कभी भी दी जा सकती है लेकिन ईद के दौरान इसका महत्व खासा बढ जाता है। यह जकात खासकर विधवा महिलाओं के साथ अनाथ बच्चों या किसी बीमारी व कमजोर व्यक्तियों को दी जाती है। जकात के लिये कहा जाता है कि नौकरी या कारोबार के जरिये पैंसा कमाते हैं उनके कमाई पर जकात दिया जाए जकात के बारे में पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया है कि जो लोग रमजान में जकात नही देते हैं उनके रोजे और ईबादत कुबूल नहीं होती बल्कि धरती और जन्नत के बीच रुक जाती है।नैनीताल जामा मस्जिद के मुफ़्ती अब्दुल खलिकने कहा कि गरीबों की ईद के बगैर मालदारों और पैंसे वालों की ईद का कोई मायने नहीं है इस लिए सभी लोग मिलकर ईद मनाएं और गरीबों के घर भी खुशियां लाएं।