उत्तराखंड सरकार द्वारा एक क्षेत्र के लिए नजूल भूमि अभिशाप व पूरे प्रदेश के लिए वरदान की नीति नही चलेगी..कानूनी एक्सपर्ट्स…

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हल्द्वानी रेलवे भूमि अतिक्रमण मामला पहुँचा सर्वोच्च अदालत..पाँच जनवरी को होगी सुनवाई…

कुमाऊँ प्रवेश द्वार हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे अतिक्रमण मामले में हालांकि इस बस्ती के निवासियों को स्थल खाली करने के लिए एक सप्ताह का समय प्रशासन द्वारा दे दिया गया है।प्रशासन का कहना है कि 10 जनवरी से ध्वस्तीकरण की कार्यवाही अमल में लाई जाएगी।
आपको बता दें कि नैनीताल हाईकोर्ट के उक्त रेलवे भूमि पर बसी इस रिहायशी क्षेत्र में ध्वस्तीकरण आदेशों के बाद हल्द्वानी का बनभूलपुरा रेलवे भूमि प्रकरण अब देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है। जिसके बाद यहां के निवासियों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने की उम्मीद भी जग गई है।सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हल्द्वानी के 11 लोगों की याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी। जिस पर 5 जनवरी को मामले की सुनवाई की तिथि तय हुई है।हल्द्वानी से काँग्रेस विधायक सुमित हृदयेश भी वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद के साथ मौजूद रहे।

केवल एक क्षेत्र के लिए नजूल भूमि अभिशाप व पूरे प्रदेश के लिए वरदान की नीति नही चलेगी..कानूनी एक्सपर्ट्स…

उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद काशिफ़ जाफ़री ने बताया कि नजूल भूमि पर लंबे समय से काबिज बाशिन्दों को बिना कहीं और बसाए ध्वस्तीकरण की कार्यवाही पूरी तरह से नाज़ायज़ है।उन्होंने कहा कि सरकार को यहाँ के निवासियों की एक लिस्ट बनानी चाहिए जो लोग 50-100 वर्षों से अधिक समय से उक्त स्थान पर रह रहे हैं।उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी सरकार पर ही होनी चाहिए।और जो लोग कालांतर में इस क्षेत्र में रहने लगे हैं और जिनके पास भूमि की कोई लीज़ पट्टा या कोई दस्तावेज भी नही है।केवल वो लोग ही अनधिकृत या अवैध हो सकते हैं।अन्य कानूनी एक्सपर्ट्स की माने तो उत्तराखंड सरकार को नजूल भूमि के लिए एक नीति घोषित करनी चाहिए। केवल एक क्षेत्र के लिए नजूल भूमि अभिशाप व पूरे प्रदेश के लिए वरदान की नीति नही चलेगी।क़ानून सबके लिए एक जैसा ही होना चाहिए।