अखबार ही थे आजादी के पहले लडाके…..हिंदी पत्रकारिता दिवस पर सीओ प्रमोद साह की कलम से

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सीओ भीमताल प्रमोद साह की कलम से

नैनीताल – 30 मई को 18 26 से हम हिंदी पत्रकारिता दिवस के रुप में मनाते हैं. अखबारों स्वतंत्रता संग्राम को प्रारंभ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इस तथ्य को उत्तराखंड के संदर्भ में और अधिक प्रमाणिक माना जा सकता है ।
कहा जा सकता है कि
उत्तराखंड में अखबारों ने ही शुरू की थी जंगे आजादी…।
देश में यद्यपि हिन्दी भाषा में उदंत मार्तंन्ड साप्ताहिक समाचार पत्र 30 मई 1826 में छपना प्रारंभ हुआ , लेकिन हिंदी भाषा में पत्रकारिता का प्रारंभ 1849 मालवा अखबार के प्रकाशन से माना जाना चाहिए, इसके बाद प्रदीप समाचार पत्र 1877 कई चरणों में प्रारंभ हुआ
समय के लिहाज से उत्तराखंड की गति राष्ट्र से ज्यादा पीछे नहीं थी ।
उत्तराखंड में समय विनोद समाचार पत्र का प्रकाशन एडवोकेट श्री जय दत्त जोशी जी ने 18 68 में जसपुर से प्रारंभ किया.. समाचार पत्र का उद्देश्य प्रारंभ से राष्ट्रीय मीडिया के समानांतर राष्ट्र में आजादी के प्रति चेतना का विस्तार करना था । समय समय पर ब्रिटिश शासन की आलोचना सभी अखबारों का मुख्य विषय होता था जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए 18 78 में देश में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लागू किया जिसमें सरकार को सरकार विरुद्ध पत्रकारिता करने पर समाचार पत्र को जप्त किए जाने का अधिकार भी प्राप्त था इस एक्ट का देश भर में व्यापक विरोध हुआ.
वर्नाकुलर प्रेस एक्ट वह पहला कानून था जिसने संगठित रूप से सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन का मंच प्रदान किया इसकी प्रतिक्रिया उत्तराखंड में भी देखी गई इस विरोध प्रदर्शन से बढ़ते खतरे को देखकर सरकार ने 18 81 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को यद्यपि समाप्त कर दिया.. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर यह धारणा मजबूत हुई सरकार के विरुद्ध संगठित होकर संघर्ष किया जा सकता है यह समाचार पत्रों की राष्ट्रीय आंदोलन में पहली जीत थी ।
18 71 में अल्मोड़ा से प्रकाशित अल्मोड़ा अखबार जिसका प्रकाशन बुद्धि बल्लभ पंत द्वारा किया गया वह पहला अखबार था जो ता उम्र (1918 ) तक ब्रिटिश शासन से लगातार गंभीर सवाल करता रहा ।

अल्मोड़ा बार के जुझारू संपादकों में बुद्धि बल्लभ पंत के बाद मुंशी इम्तियाज अली, पंडित लीलानंद जोशी, पंडित सदानंद संवाद, पंडित विष्णु दत्त जोशी व बद्री दत्त पांडे महत्वपूर्ण बद्री दत्त पांडे जी के समय में अल्मोड़ा अखबार जो कि कुमाऊं क्षेत्र में सामाजिक चेतना और आजादी के आंदोलन क्श कुमायू परिषद के नेतृत्व में लड़ा जा रहा था , का मुखपत्र जैसा बन गया था। इसकी लगातार और प्रभावी संपादकीय ने ब्रिटिश सरकार को लगातार दबाब में रखा .
जंगलात विभाग के अस्तित्व में आने और जंगली जानवरों से रक्षा के लिए लागू लाइसेंस प्रणाली के विरुद्ध अल्मोड़ा अखबार ने लगातार आक्रमक भूमिका अख्तियार की साथ ही कुली बेगार का विरोध भी अल्मोड़ा अखबार का प्रारंभ से ही मुख्य विषय था । अल्मोड़ा अखबार ने 18 74 में ही कुली बेगार पर विस्तृत लेख लिखा 18 84 में ब्रिटिश शासन के लिए बेगार को अहितकर बताया था।
इस मध्य अल्मोड़ा अखबार के समानांतर 1893-94 में कुर्मांचल समाचार, चंपावत मायावती से प्रबुद्ध भारत का प्रकाशन भी अखबार की दुनिया में बड़ी घटनाएं थी लेकिन 1902 में लैंसडान से गिरजा दत्त नैथानी ने गढ़वाल समाचार तथा 1905 में देहरादून से तारा दत्त गैरोला जी ने गढ़वाली मासिक समाचार पत्र का प्रकाशन किया, इन दोनों ही समाचार पत्रों ने उत्तराखंड में आजादी के लिए जनचेतना जागृत करने का व्यापक कार्य किया और अल्मोड़ा अखबार के सहयोगी बने रहे ।
अखबारों से उत्पन्न नागरिक चेतना ने उत्तराखंड में आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के समर्थन में व्यापक चेतना जागृत की जिनके परिणाम स्वरुप ही 1921 में बागेश्वर में कुली बेगार कि रजिस्टररो को सरयू में प्रवाहित किया गया . साथ ही कुमायूं तथा तराई भाबर में जंगल के अधिकारों के लिए पश चेतना जागृत करने में अल्मोड़ा अखबार और फिर शक्ति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
अल्मोड़ा अखबार नागरिक चेतना के विकास के साथ ही नौकरशाही पर नियंत्रण रखने का कार्य भी प्रभावी तरीके से कर रहा था ।
1918 की होली पर अल्मोड़ा अखबार ने डिप्टी कमिश्नर लोमेश पर जंग करते हुए जी हजूरी होली और लोमेश की भालूशाही जैसे पीछे लेख प्रकाशित किए जिससे ब्रिटिश सरकार बौखलाई और अल्मोड़ा अखबार पर ₹1000 का जुर्माना लगा दिया.
मई 1918 में पौड़ी से प्रकाशित पुरुषार्थ समाचार पत्र ने डिप्टी कमिश्नर लोमेश के इस दुर्ग को बड़े शानदार तरीके से व्यक्त कर कहा ।
” एक फायर में तीन शिकार’
कुली मुर्गी और अल्मोड़ा अखबार ”
जुर्माना अदा करने से बेहतर अल्मोड़ा अखबार को बंद करना समझा गया लेकिन अल्मोड़ा अखबार की जगह तुरंत ही देशभक्त प्रेस अल्मोड़ा से प्रकाशित शक्ति अखबार ने ले ली शक्ति ने अपने पहले अंक 15 अक्टूबर 1918 में अपने तेवर प्रदर्शित करते हुए संपादकीय में लिखा .

” उसका उद्देश्य देश की सेवा करना है ,देश हित की बातों का प्रचार करना देश में अराजकता और पूरा जगता के भाव को ना आने देना प्रजा के पक्ष को निर्भीक और प्रतिष्ठा पूर्वक प्रतापादित करना है ”
शक्ति को जन समुदाय की पत्रिका के रूप में घोषित किया ।
कुमाऊं और गढ़वाल परिषद को सक्रिय रखने रोलेट एक्ट के विरोध में जनचेतना जागृत करने के कार्य में शक्ति अखबार ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
शक्ति अखबार के संपादक बद्री दत्त पांडे के साथ ही विक्टर मोहन जोशी और सिद्धा साह बहुत प्रखर विचार और लेख शक्ति के माध्यम से प्रकाशित होते थे ।
बद्री दत्त पांडे के जेल जाने के बाद तथा बाद में श्री दुर्गा दत्त पांडे मोहन जोशी मनोहर पंत राम सिंह धोनी कामरेड पूरन चंद तिवारी श्रीदेवी दत्त पंत, कृष्ण चंद जोशी मथुरा दत्त त्रिवेदी धर्मानंद पांडे जैसे महत्वपूर्ण और राष्ट्र के लिए समर्पित नाम शक्ति अखबार के संपादक रहे बाद में श्री कैलाश पांडे जी ने इनका संपादन किया।
विश्वंभर दत्त चंदोला गढ़वाली के संपादक रहे और इस दौर में इलाहाबाद तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षारत गढ़वाल के प्रतिभाशाली छात्रों राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रुप से जुड़ने के लिए प्रेरित भी किया इसमें भैरव दत्त धूलिया ,भोला दत्त चंदोला जीवानंद बडोला, गोवर्धन बडोला ,भोला दत्त डबराल आदि महत्वपूर्ण थे ।
इन महत्वपूर्ण अखबारों के साथ ही तीस के दशक में पौड़ी से प्रताप सिंह नेगी जी ने क्षत्रिय वीर समाचार पत्र, बैरिस्टर मुकंदी लाल ने 1922 में तरुण कुमायूं, पर्वती भाषा में एक अन्य समाचार पत्र कुमाऊं कुमुद भी प्रकाशित हुआ इसके अलावा थोड़ी समय विक्टर मोहन जोशी ने स्वाधीन प्रजा निकाला जिस पर ₹6000 का जुर्माना भी लगाया गया था।
इसमें हरिप्रसाद टम्टा जी ने अल्मोड़ा से ही क्षमता समाचार पत्र का प्रकाशन किया जोकि दलित चेतना का हरिजन के बाद देश में दूसरा समाचार पत्र था. महेश आनंद थपलियाल जी ने 1934 में उत्तर भारत का प्रकाशन पौड़ी से किया।
1939 में लैंसडाउन से कर्मभूमि का प्रकाशन प्रारंभ हुआ भक्त दर्शन और भैरव दूधिया जैसे ख्यातिलब्ध पत्रकार इसके संपादक रहे । 1939 में ही पितांबर पांडे जी ने हल्द्वानी से जागृत जनता नामक साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला।
इस प्रकार 1868 से देश की आजादी होने तक उत्तराखंड में अलग-अलग समय में 25 से 30 समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ इनमें से अधिकांश के संपादक राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे इन समाचार पत्रों में अल्मोड़ा अखबार, शक्ति, स्वाधीन प्रजा, गढ़वाली गढ़वाल समाचार, कर्मभूमि आदि समाचार पत्रों ने देश की आजादी में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई सही अर्थों में यह अखबार ही उत्तराखंड में आजादी के आंदोलन के पहले नायक थे ।

 

वरिष्ठ पत्रकार  प्रयाग पांडे की वॉल से

 

हिंदी पत्रकारिता के 196 साल।

अभिव्यक्ति की आजादी पर दिल से यक़ीन करने वालों को हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई!

आधुनिक हिंदी पत्रकारिता के जनक श्री जुगल किशोर शुक्ल जी को श्रद्धापूर्वक नमन।

भारत में हिंदी पत्रकारिता को आज 196 साल पूरे हो गए हैं।यूँ तो भारत में पत्रकारिता की शुरूआत सतयुग से मानी जाती है। तब देवर्षि नारद जी मानव कल्याण के निमित्त समाचारों का संप्रेषण किया करते थे।उनके समाचारों का देव लोक में व्यापक असर होता था। जब देवर्षि नारद जी को संवाददाता के रूप में अपनी ख्याति और हैसियत का गुमान होने लगा,भगवान ने उनका चेहरा बंदर जैसा बना दिया। वे उपहास का पात्र बने तो नारद जी का भ्रम दूर हो गया।महाभारत काल में संजय ने पत्रकार की भूमिका अदा की, उन्होंने धृष्टराष्ट्र को महाभारत के युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाया, इसे आप पहला सीधा प्रसारण भी कह सकते हैं। रामायण काल में राजनीतिक पत्रकारिता की शुरूआत हुई,उस दौर में मंथरा ने राजनीतिक पत्रकार की भूमिका अदा की थी।

प्रारंभिक काल में संत, फ़क़ीर, भाँट और चारण सूचनाओं के प्रसार में सहायक होते थे। प्राचीन काल में भारत में राजाओं द्वारा गुप्तचरों की नियुक्तियां की जाती थीं। भारत में मुग़ल काल में नगरों में संवाद लेखकों की तैनातगी की जाती थी, इन्हें ‘वाकया नवीस’ कहा जाता था।इनके मुखिया को ‘वाकया निगार’ कहते थे। वस्तुतः ‘वाकया नवीस’ आधुनिक पत्रकारों के पुरखे थे। उस दौर में एक स्थान से दूसरे स्थान में समाचार पहुँचाने का काम ‘हरकारे’ किया करते थे।अकबर के शासनकाल में समाचार संकलित करने वालों को ‘ ख़बर नवीस’ एवं समाचार लेखक को ‘वाकिया नवीस’ और समाचारों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वालों को ‘क़ासिद’ या ‘हरकारा’ कहा जाता था।भारत में ब्रिटिश शासन कायम होने के बाद भी मामूली फेरबदल के साथ कमोबेश यही व्यवस्था क़ायम रही।

अगर विश्व पत्रकारिता के इतिहास की बात करें तो ईसा से 59 वर्ष पूर्व जूलियस सीज़र ने रोम से ‘एक्टाडियोनी रोमानी’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया था। 263 ईसवीं में चीन के पेइचिंग से ‘चीनी गजट’ प्रकाशित हुआ।जबकि 1620 में हॉलैंड से अंग्रेजी का नियमित अख़बार निकलने लगा था।

भारत में 1550 में पुर्तगाली मिशनरियों ने गोवा में पहला छापाखाना लगाया।भारत में पत्रकारिता के जनक जेम्स ऑगस्टन हिकी थे। उन्होंने 29 जनवरी,1780 में कलकत्ता से ‘बंगाल गजट एंड कलकत्ता जनरल एडवाइजर’ नाम का समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया। ‘बंगाल गजट’ भारत का पहला आधुनिक समाचार पत्र था,जो कि ‘हिकी गजट’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जेम्स ऑगस्टन हिकी ने ‘बंगाल गजट’ के जरिए प्रकारांतर में भारत की भावी पत्रकारिता का न्यूनतम आदर्श तय कर दिए थे। हिकी ने निर्भीक पत्रकारिता की मिसाल पेश की। वे सरकार की आलोचनाओं और यहाँ तक कि तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स की निंदा करने से भी नहीं चूके। हालाँकि उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी। ‘बंगाल गजट’ पर सरकारी छापे पड़े।जुर्माने हुए। सरकार ने ‘बंगाल गजट’ को बंद करा जेम्स ऑगस्टन हिकी को जेल भेज दिया। अंततः उन्हें भारत छोड़ने का आदेश दे दिया गया। यात्रा के दौरान जहाज़ में ही उनकी दुःखद मृत्यु हो गई थी।

भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के जनक लाला राममोहन राय थे,उन्होंने 4 दिसंबर,1821 को बंगला साप्ताहिक ‘संवाद कौमुद’ का प्रकाशन/संपादन प्रारंभ किया।

भारत में हिंदी पत्रकारिता का जन्म गैर हिंदी भाषी प्रांत बंगाल में हुआ। हिंदी पत्रकारिता के जनक थे-पंडित जुगल किशोर शुक्ल। श्री जुगल किशोर शुक्ल जी का जन्म कानपुर में हुआ था। वे जीविकोपार्जन की तलाश में कलकत्ता चले गए। उन्होंने 16 फरवरी,1826 को अखबार निकालने के लिए सरकार से लाइसेंस प्राप्त किया। 30 मई,1826 को कलकत्ता से हिन्दी साप्ताहिक “उदन्त मार्तण्ड” का प्रकाशन शुरू हुआ। “उदन्त मार्तण्ड” के मुद्रक और मैनेजर श्री मन्नु ठाकुर थे। “उदन्त मार्तण्ड” के कुल 79 अंक प्रकाशित हुए। आर्थिक संकट के चलते दिसंबर,1827 में अखबार को बंद करना पड़ा।श्री जुगल किशोर शुक्ल जी ने ‘उदन्त मार्तण्ड’के अंतिम अंक में लिखा:-
आज दिवस लौउग चुक्यो मार्तण्ड उदन्त।
अस्तांचल को जात है दिन कर दिन अब अंत।।

हालाँकि ‘उदन्त मार्तण्ड’ अल्पजीवी सिद्ध हुआ।पर ‘उदन्त मार्तण्ड’ ने न केवल श्री जुगल किशोर शुक्ल जी को हिंदी पत्रकारिता के जनक के रूप में प्रतिष्ठित किया,बल्कि हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा का महत्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु भी बना।

मूल्यहीन, घोर व्यावसायिक और पेड न्यूज की पत्रकारिता के मौजूदा दौर में भी तेजस्वी,ओजस्वी,परमन्याय-परायण एवं सोद्देश्य पत्रकारिता में संलग्न चंद पत्रकारों को प्रणाम और हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई।

इस अवसर पर स्वस्थ्य,निर्भीक, जनपक्षीय और क्रांति धर्मी पत्रकारिता के प्राण -तत्व गणेश शंकर विद्यार्थी जी का स्मरण करना समीचीन होगा।विद्यार्थी जी ने कहा था : “संसार के अधिकांश समाचार- पत्र पैसे कमाने और झूठ को सच और सच को झूठ सिद्ध करने के काम में उतने ही लगे हैं जितने की संसार के बहुत-से चरित्र-शून्य व्यक्ति।…….इस देश में समाचार-पत्रों का आधार धन हो रहा है।धन से ही वे निकलते हैं, धन के आधार पर चलते हैं।और बड़ी वेदना के साथ कहना पड़ रहा है कि उनमें काम करने वाले बहुत से पत्रकार भी धन की अभ्यर्थना करते हैं।…..।”
“श्रेष्ठ और सक्षम पत्रकार राष्ट्र का नेता होता है।लोक सेवा ही संपादक का धर्म है।”
“…..मैं पत्रकार को सत्य का प्रहरी मानता हूँ।सत्य को प्रकाशित करने के लिए वह मोमबत्ती की भाँति जलता है।”
“…….पत्रकार समाज का सृष्टा होता है।केवल समाचार देना,पैसा कमाना और इस प्रकार पैसा कमाना पाप है।”

इस मौके पर भारतीय पत्रकारिता के उद्देश्यपूर्ण और गौरवशाली अतीत की कुछ टिप्पणियों पर गौर करना समीचीन होगा-

“अपने मन और आत्मा की स्वतन्त्रता के लिए अपने शारीर को बंधन में डालने में मुझे आनन्द आता है ।”
-जेम्स आगस्टस हिक्की (भारत के पहले समाचार पत्र -“बंगाल गजेट एण्ड कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर” या ” हिकीज गजेट ” के सम्पादक ।

“ऐसी कोई भी लड़ाई जिसका आधार आत्मबल हो, अख़बार की सहायता के बिना नहीं चलाई जा सकती ..।”
– महात्मा गाँधी ।

” मैंने तो जर्नलिज्म में साहित्य को स्थान दिया है । बुद्धि के ऐरावत पर म्युनिसिपल का कूड़ा ढोने का जो अभ्यास किया जा रहा है अथवा ऐसे प्रयोग से जो सफलता प्राप्त की जा रही है उसे मैं पत्रकारिता नहीं मानता “।
-पंडित माखनलाल चतुर्वेदी

“अख़बारनवीस भी नई रोशनी के पंडित हैं और मौलवी हैं। वे ईश्वर , मुल्क तथा कौम के लिए लोगों को नेकी का रास्ता बतालाने वाले हैं …………..।”
– मदन मोहन मालवीय ।